शौक नहीं सुकून है…

कभी शादी ब्याह में मेल  वीडियोग्राफर या फोटोग्राफर  ही फोटो खीचते हुए नज़र आते थे, लेकिन अब ज़माना बदल रहा है। आज हमारे जैसी लड़कियाँ शादी की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कर रही है। यहाँ पर भी दो नज़रिये है कही पर हमें बहुत हैरानी से देखा जाता है और हमें स्पेशल अटेन्शन भी मिलता है वही दूसरी जगह हम लोगो की निगाह में अच्छे भी नहीं है। क्यूंकि यह काम तो मर्दो का है और हम लड़कियां ये काम करेंगी देर रात तक घर से बाहर रहेंगी तो फिर हम अच्छी लड़की कहाँ है। लेकिन हम लोगों ने इन बातों को नज़र अंदाज करते हुए आज हम लोगो ने औरतों का एक स्टूडियो (सनतकदा फिल्म स्टूडियो) ही बना लिया है और अब हम शहर क्या शहर से बाहर जाकर इस काम को प्रोफेशनली करते है लोगों से मिले अटेन्शन से हमारी हिम्मत और बढ़ती है।       

डर के आगे जीत है…

पता है पिछले एक साल में हमें ऐसा लग रहा है कि जैसे एक जगह से दूसरे जगह शिफ्ट होने का काम ही कर रहे है, सबसे पहले तो हमारा घर शिफ्ट हुआ उसके बाद ऑफिस अब एक और नया ऑफिस बनाना है। एक तरफ तो यह ख़ुशी है कि अब हम बड़े हो रहे है और अपने पैरो पर खड़े हो रहे है, शहर के अलग-अलग हिस्सों में फ़ैल रहे है। दूसरी तरफ यह डर भी है कि यह फैलाओ कही हम सबको अलग न कर दें, यह डर वाजिब भी है क्यूँकि सब अपने कामों में बिजी भी रहेंगे इसलिए दूरियाँ बन भी सकती है। अपने इस डर को अलग करके हमें फिर से एक जगह तलाश करके एक और नया ऑफिस बनाना है। आज कल हमारी टीम इसी मशक्कत में है, लखनऊ में कम पैसे में एक रूम किराए पर लेना बड़ी बात है। लेकिन हम लोग इस बड़ी बात को भी छोटी बात बना देंगे और नया ऑफिस ज़रूर बनायेंगे।    

ख़ुशी की एक झलक…


महिला दिवस के मौक़े पर 8 मार्च को “हम हैं लखनऊ लीडर्स” का कार्यक्रम ग्लोबल फंड फॉर वूमेन एवं ए० जे० डब्ल्यू० एस० के सपोर्ट से सदभावना ट्रस्ट द्वारा इस प्रोग्राम का आयोजन किया गया . जहाँ हमने सुने “हम हैं लखनऊ लीडर्स” के कुछ खट्टे मीठे अनुभव उन्ही की ज़ुबानी। इस मौके पर सभी लड़कियाँ बहुत खुश नज़र आयीं समुदाय में बने नए मंचों की छोटी बड़ी सभी लड़कियों ने पहली बार महिला दिवस मनाया और यह जाना कि हमारा भी ख़ुशी मनाने का कोई दिन होता है इस कार्यक्रम में शामिल होकर सबने खूब मज़े किये.

हमें ख़ुशी कब मिलेगी?

आज के ज़माने में हर इंसान दुखी है ऐसे ही कल हमें एक औरत मिली जो अपनी ज़िन्दगी से बहुत मायूस थी. उनको खुद अपने दुःख का कारण नहीं पता था न उनके पास पैसों की कमी थी ना उनकी personal life में कोई issue था और वह देखने में भी बहुत खूबसूरत थी।

वह कई साइकोलॉजिस्ट्स से मिली पर सारे उपाय बेकार गए…और धीरे-धीरे उसकी मायूसी बढ़ती गयी और वह मायूसी सुसाइडल थॉट्स में बदलने लगी… उन्हें लगा कि इस दुःख भरी ज़िन्दगी से अच्छा तो मर जाना है और यही सोच कर वह नदी में कूद कर जान देने जा रही थी। तभी वहाँ उन्हें औरत दिखाई दी जो बच्चों को पढ़ा रही थी उसके चेहरे ख़ुशी और आँखों का संतोष देख कर वह रूक गयी और जाकर उस औरत से पूछा तुम इतनी खुश कैसे हो।

“वह औरत मुस्कुराकर बोली” अगर तुम मुझसे 2 साल पहले मिली होती तो शायद तुम्हे मुझसे दुखी इंसान पूरी दुनिया में कोई नहीं दिखता… मेरे पति को मेरी आँखों के सामने मारा गया। मेरे बच्चे मुझे से दूर हो गए मुझे सड़को पर ठोकरे खाने को मिली मैं मानसिक तौर से पूरी तरह बीमार थी…. एक ज़िन्दा लाश की तरह नदी के किनारे पड़ी थी तभी एक महिला आयी और मुझे उठा कर ले गयी। मैं उसे नहीं जानती थी न वह हमें जानती थी हम दोनों का कोई रिश्ता नहीं था। फिर उसने मुझे अपने घर में रखा मेरा इलाज करवाया उसको मुझसे कोई स्वार्थ नहीं था जब मैं सही हो रही थी तो वह मुझे देख कर बहुत खुश होती थी। उसके चेहरे की मुस्कुराहट देखकर मुझे भी मुस्कुराहट आ जाती थी। जब मैं पूरी तरह ठीक हो गयी तो मैंने सोचा कि इस औरत का तो मुझसे कोई रिश्ता नहीं था फिर भी इसने मेरी इतनी सेवा की मेरी सेवा से इसको ख़ुशी मिली तो आज से मैं भी ऐसा करूंगी। आज मैं इन बच्चों को सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए पढ़ाती हूँ जब यह पढ़ते है और हॅसते है तो इनको देखकर मैं सब भूल जाती हूँ और इन ही कि तरह बच्चा बन जाती हूँ।

इस कहानी की सबसे ख़ास बात ये है कि तीनो महिलायें अलग धर्म और जाति की थी लेकिन इन लोगो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा सब एक दूसरे पास बैठी बात की एक दूसरे के साथ रही एक दूसरे की ख़ुशी देख कर खुश हुयी और सबकी स्थिति भी एक जैसी ही थी…. मेरी आप सब लोगो से यही गुज़ारिश की हम इन्सान है सब एक बराबर है इसलिए बिना भेदभाव किये एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल रहे तभी हम और हमारा समाज खुश रह पायेगा।

मैं बहुत खुश हूँ…

  • आज मैं बहुत खुश हूँ क्यूँकि आज मैं अपने पैरो पर खड़ी हूँ, अपने पैसों से अपने खर्च पूरे कर रही हूँ अपनी छोटी सी ज़रुरत के लिए आज हमें किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता है। आज से दो माह पहले तक हमें हर ज़रुरत के लिए अपनी अम्मी और भाई के सामने हाथ फैलाना पड़ता था। ज़्यादा तर तो वह लोग मना ही कर देते थे, और हम रोते हुए अपनी ज़रुरत को अपने अन्दर ही दबा लेते थे। अपनी खुवाहिशों का गला घोट कर हमने अपनी ज़िन्दगी का बहुत लंबा वक़्त गुज़ार दिया। पता नहीं एक दिन जैसे चमतकार हुआ जिससे आज हमारी ज़िन्दगी में बदलाव आया। उस दिन शायद ऊपर वाले को मेरे पर रहेम आ गया और मेरी मुलाकात शबनम अप्पी से हुयी जो सदभावना ट्रस्ट में काम करती थी। उनकी संस्था लड़कियों के साथ उनकी लीडरशिप को लेकर काम करती है। फिर हम भी उस संस्था में लीडरशिप बिल्डिंग प्रोग्राम से जुडे और एक साल तक ट्रेनिंग ली जिसमें हमने बहुत कुछ सीखा जैसे कम्प्यूटर,फोटोग्राफी,वीडियोग्राफी यह सारी चीज़े हमने नारीवादी नज़रिये के साथ सीखी इस ट्रेनिंग ने हमें एक चश्मा दिया जिससे हम दुनिया को अपनी नज़र से देख पाए और अपनी समझ बना पाए, जिसकी वजह से आज हम जॉब कर रहे है और अपने पैरो पर खड़े है। लड़कियों को आत्मनिर्भर होना बहुत ज़रूरी है।

Why a ‘theme’ ?

The festival theme roots us squarely in the city of Lucknow, allowing us to explore different facets from the historic to the culinary; from communities to film and traditional clothes to the season of spring. This year we highlight craft & craftspeople of the city & their contribution to the cultural depth of Lucknow, over the generations ~ Husn e karigari e Awadh.

#craftsofawadh #MSLF2019 #DusSaalBemisaal

Richard Franco & Stephanie Pommeret- mslf


Stéphanie Pommeret is a plastics technician and a visual artist. Her work is based on social issues that are crucial to the choice of the techniques and material being used. She has developed work and research focusing on Maps. They raise the paradox of a both distant and attentive glance pointing out our different relations to the planet.In the past ten years, Stephanie has presented several exhibitions and conducted workshops in her native region.

#craftsofawadh #DusSaalBemisaal #MSLF2019