” रिश्ता न तो खून का था , न ही ज़ात का
यह रिश्ता था, दिलों के जज़्बात का”
मेरी सहेली सलमा… कल वह बहुत उदास थी, उसकी उदासी की वजह किसी को समझ नहीं आ रही थी, सलमा ने देर रात हमें फ़ोन किया लेकिन उसकी आवाज़ में पहले जैसी चंचलता नहीं थी। बहुत पूछने पर उसने मेरे साथ अपना दर्द साझा किया उसने बताया कि उसके पड़ोस में एक चाची रहती थी जिनका कल अचानक इन्तिकाल हो गया यही वजह थी जिससे वह बहुत ही ज़्यादा ग़मज़दा थी, और उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था।
चाची के चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट रहती थी उनके चेहरे की उस मुस्कुराहट को देखकर सलमा भी अपने आप ही खुश हो जाती थी।
वह चाची सलमा की कोई रिश्तेदार नहीं थीं न ही सलमा का उनसे कोई रिश्ता था बल्कि चाची हिन्दू थी फिर भी वह दोनों एक दूसरे को बहुत मानती थीं सलमा तो बस आते-जाते उनसे मिलकर कुछ बातें कर लिया करती थी।
आज के वक़्त में जहाँ हिन्दू मुस्लिम को लेकर दिलों में जो नफ़रत और बैर पल रहा है, उस बैर को खत्म करने के लिए सबके दिलों में इस तरह की मोहब्बत का होना बहुत ज़रूरी है।